” चलो आज मिल कर ,
कुछ दर्द छान लेते हैं ।
ये जो टूट के बिखरे हैं ,
उन रिश्तों कि वजह जान लेते हैं ।
ये जो गलियों से निकल कर ,
सड़क हो गए थे ।
चौराहे पर इन रिश्तों से ,
एक पल की ही सही ” लाल बत्ती ” की भीख मांग लेते हैं ।
चलो आज मिल कर ,
कुछ दर्द छान लेते हैं ।
बात कुछ भी नहीं थी ,
मगर एक कहानी बन गई ,
चलो बातों बातों में इस बात को टाल देते हैं ,
चलो आज मिल कर ,
कुछ दर्द छान लेते हैं ।
वो जो बस ठहरा था बीता कहां था ,
वक़्त की उस बर्फ को चलो आज ,
अपनी हथेली कि गर्माहट देते हैं ।
चलो आज मिल कर ,
कुछ दर्द छान लेते हैं ।
जाने कबसे कुछ करवटें पीठ दिए जो सोई हुई हैं ,
चलो गलतफहमी की उस चादर एक बार झाड़ देते हैं ,
चलो आज मिल कर ,
कुछ दर्द छान लेते हैं ।
मेरे ” मैं ” से जो पूछते आए हो तुम उसके होने की वजह ,
चलो कुछ पलों को ये ” मैं” का मुखौटा उतार देते हैं ,
चलो आज मिल कर ,
कुछ दर्द छान लेते हैं ।
ऐसे ना सही वैसे ही गुजर जाती जिंदगी ,
एक बार चलो कशमकश की हवाओं के बिना सांस लेते हैं ,
चलो आज मिल कर ,
कुछ दर्द छान लेते हैं ।
जरूरी तो नहीं हर बात के लिए कोई बात की जाए
एक बार ही सही इस बात को टाल देते हैं ,
चलो आज मिल कर ,
कुछ दर्द छान लेते हैं ।
उम्मीदों में भटक रही ये कोई जिंदगी तो नहीं ,
चलो इसकी बैसाखियां एक बार हवाओं में उछाल देते हैं ।
चलो आज मिल कर ,
कुछ दर्द छान लेते हैं ।
Hindi Poetry by Nikhil Kapoor
Blog: Lamhe Zindagi Ke
बहुत खूब लिखा है। सुन्दर कविता है मन को छू जाने वाले भाव हैं। इस की एक एक पंक्ति मानो मेरे मन के भाव अभी व्यक्त कर रही हो।आज की जिस तरह की जीवनशैली हम सब जी रहे हैं हम सभी को ये अपनी सी लगेगी।
नमन आपको । इन पंक्तियों पर इतनी स्नेहिल अभिव्यक्ति , धन्यवाद । मैं कविता नहीं लिखता बस जिंदगी में को लगता है , महसूस होता है शब्दों में संजों देता हूं